माल्यार्पण करते सीतामढ़ी के अधिवक्ता श्रीनिवास मिश्रसुरसंड/सीतामढ़ी, (रजनीश के झा)। हरारी दुलारपुर में आयोजित श्री राम कथा के सातवें दिन अवध विश्वविद्यालय से सम्बद्ध डिग्री काॅलेज के पूर्व प्राचार्य श्रीराम कथा प्रवक्ता डाॅ.रमेशाचार्य ने केवट प्रसंग के संदर्भ में चर्चा करते हुए कहा-"नाथ आजु मैं काह न पावा,मिटे दोष दुख दारिद दावा/बहुत काल मैं कीन्हि मजूरी,आजु दीन्हि बिधि बन भलि भूरी/अब कछु नाथ न चाहिअ मोरे,दीन दयाल अनुग्रह तोरे/"केवट कहता है -हे नाथ!आज मैंने क्या नहीं पा लिया।आज मेरे जीवन के दोष,दु:ख और दरिद्रता की जलन समाप्त हो गई।मैंने बहुत समय तक मजदूरी की।परन्तु ब्रह्मा जी ने आज अच्छी और भरपूर मजदूरी दिलवाई।हे दीनदयाल!आपकी कृपा से अब मुझे और कुछ नहीं चाहिए।हठीला केवट अपनी अटपटी वाणी से प्रभु के हृदय को गुदगुदा देता है।राघवेन्द्र के उन्मुक्त हास्य से गंगा-तट मुखरित हो उठा।आगे डाॅ.रमेशाचार्य ने कथा का विस्तार करते हुए कहा- इतना ही नहीं ,वह राघव को अपनी इच्छानुकूल चलने को बाध्य कर देता है।उसका आग्रह था कि यदि आपको पार जाना है तो चरण धुलाकर ही आप इस संकल्प की पूर्ति कर सकते हैं।क्योंकि आपके श्रीचरणों के रज(धूल)में मानवी बना देने की दिव्य जड़ी है।अत:नाव पर बैठाने से पहले आपको चरण धुलाने होंगे।यह चरण -प्रक्षालन भी आपकी आवश्यकता है,इसलिए आपको ही मुझसे चरण धोने का अनुरोध करना होगा-'जौं प्रभु पार अवसि गा चहहू ,मोहिं फद पदुम पखारन कहहू।' अन्तत: प्रभु को कहना ही पड़ा-'बेगि आनु जल पायँ पखारू।'इस प्रकार केवट ने पैर धोकर प्रभु को पार उतारा। विदित हो कि आज की कथा में विशेष अतिथि के रुप में सीतामढ़ी से पधारे अधिवक्ता श्रीनिवास मिश्र ने महाराजश्री का माल्यार्पण किया तथा व्यासपीठ का पूजन किया।श्रीनिवास मिश्र ने अपने उद्बोधन में कहा-राम कथा का अधिक से अधिक लोग श्रवण करें और जीवन को धन्य बनावॆं। कल भरत-चरित की कथा होगी।
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