कविता: मत बांधो जंजीरों में - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 2 मार्च 2025

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कविता: मत बांधो जंजीरों में

छोड़ दो मुझे, अब जीना है,

मत बांधो मुझे जंजीरों में,

ऊंचे गगन में अब उड़ना है,

क्यों छीनते हो मुझसे मेरी आजादी?

नहीं बंधना मुझे किसी रिश्तो में,

कल उठकर कुछ बनना है मुझे,

देश और समाज को बदलना है मुझे,

छोड़ दो खुद से जीने दो मुझे,

कदम से कदम मिलाकर चलना है मुझे,

नहीं रहना अब किसी चहारदीवारी में,

पक्षी बन कर उड़ जाना है मुझे।।





Ayushi%20Kumari

आयुषी कुमारी

मुजफ्फरपुर, बिहार

चरखा फीचर्स

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