सीतामढ़ी : प्रेम निर्मल और नि:स्वार्थ हो : डाॅ.रमेशाचार्य - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 6 मार्च 2025

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सीतामढ़ी : प्रेम निर्मल और नि:स्वार्थ हो : डाॅ.रमेशाचार्य

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सुरसण्ड/सीतामढ़ी (रजनीश के झा)। प्रखण्ड के हरि दुलारपुर अवस्थित एस के एम विद्यालय परिसर में आहूत नौ दिवसीय श्री राम कथा ज्ञानमहायज्ञ के पाँचवें दिन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पी-एच.डी.की उपाधि से सम्मानित पूर्व डिग्री काॅलेज प्राचार्य अवध विश्वविद्यालय अयोध्या सह सम्प्रति अखिल भारतीय श्री राम कथावाचक डाॅ.रमेशाचार्य ने समादृत व्यासपीठ से श्रद्धालु जनमानस को सम्बोधित करते पुष्पवाटिका  प्रसंग को आध्यात्मिक साहित्यिक वैज्ञानिक दार्शनिक भाव से उद्धृत करते हुए कहा-प्रथमत:इस मिथिला की पावन धरा धाम को सादर सस्नेह नमन वन्दन और अभिनन्दन करता हूँ तथा आप सब मिथिलावासियों का आभार प्रकट करता हूँ कि आप सब मिथिलावासी हैं।मिथिला का रज किसी राज से महान् है।महर्षि विश्वामित्र के साथ अनुज लक्ष्मण सहित तीनों लोकों के स्वामी कौशल्या-दशरथ नन्दन प्रभु श्री रामचन्द्र जी का मिथिला की लोक विख्यात भूमि पर पदार्पण होता है।महाराज जनक द्वारा सेवित जनकपुर की मनोरम छटा को देखकर राम-लक्ष्मण मोहित हो उठते हैं। जनकपुर दुल्हन की भाँति यूँ श्रृंगारित है कि इसके समक्ष देवराज इन्द्र की अमरावती  भी निष्प्राण-सा परिलक्षित हो रहा है।जय हो मिथिला धाम।जय हो जनकपुर।

   

कथा का विस्तारीकरण करते हुए डा.रमेशाचार्य महाराज ने कहा-जब रामचन्द्र जी लखनलाल जी सहित नगर से गुजरते हैं तो सम्पूर्ण नर-नारी,बाल-वृद्ध उनके अनुपम अलौकिक दर्शनकर अपने को धन्य-धन्य समझते हैं।सभी भगवान् की एक झलक देखने के लिये ललायित हैं।शायद भक्त की यही पराकाष्ठा होती है।अतएव नारायण की भक्ति हर जीवमात्र को करनी चाहिए।वास्तविक शक्ति तो भक्ति से ही मिलती है। भक्ति में अनुपम शक्ति होती है। भगवान् महाराज जनक जी की विलक्षण पुष्पवाटिका में प्रवेश करने हेतु माली से प्रार्थना करते हैं। यही तो मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा है।जो सबमें श्रेष्ठता का आभास करता हो वही तो महान् है।राम जी पुष्पवाटिका  में प्रवेश कर आदर व प्रेम के साथ गुरु विश्वामित्र के पूजा हेतु फूल लोढ़ते हैं।ठीक उसी क्षण माता सीता गौरि -पूजन के उद्देश्य से वहाँ पधारती हैं।एक तरफ भक्ति की देवी सीता और दूसरी ओर भक्ति-पति राम जी।दोनों एक दूसरे को अपलक निहारते हैं।उस समय दोनों विलक्षण मौन  प्रेम की सरिता में ऐसे डुबकी लगा पड़ते हैं कि अपना सुध-बुध खो डालते हैं।वास्तव में प्रेम निर्मल एवं नि:स्वार्थ होना ही श्रेयस्कर प्रेम माना जाता है।प्रेम असीम होता है।राम और सीता का प्रेम गंगाजल के समान  है। राम और सीता की तरह प्रेम सात्विक होता है।कल धनुष-यज्ञ सह सीता-राम विवाह का प्रसंग प्रस्तुत किया जायेगा।

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