शक्ति की अधिष्ठात्री मां दुर्गा और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की आराधना का पर्व चैत्र नवरात्रि रविवार को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना के साथ शुरु होगा। इस दौरान 6 अप्रैल तक नौ दिनों तक मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की आराधना एवं रामनवमी तक भगवान श्रीराम की पूजा-अर्चना होगी। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष भी मनाया जाता है। चैत्र साल का पहला महीना है। शुक्ल प्रतिपदा को पहली तिथि माना जाता है. इस दिन को नव संवत भी कहा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि रचने की शुरुआत की थी। इसी दिन को विक्रम संवत के नए साल का आरंभ माना गया. हिन्दू नववर्ष के शुरू होते ही पेड़ पौधे भी अपने नए कलेवर में आते हुए नई पत्तियों को धारण करने लगते हैं. मनुष्यों के रूप में भी परिवर्तन हो जाता है. इसके अलावा अंतरिक्ष में ग्रहों की स्थितियां भी बदल जाती हैं. पाताल से लेकर के समस्त लोक तक में परिवर्तन हो जाता है. नवरात्र का उपासना करके सनातनी भी अपने नए कलेवर में हो जाते हैं. इस दिन महाराष्ट्र में गुढ़ी पड़वा, आंध्र प्रदेश में युगादि, सिंधी समाज में चेट्टी चंड मनाने की परंपरा है. विक्रम संवत शुरुआत राजा विक्रमादित्य ने की थी
धर्म, अध्यात्म में जनता का मन, बुद्धि संयुक्त होगा. पश्चिम दक्षिण दिशा में कहीं-कहीं खण्ड वृष्टि का योग बनेगा और कुछ स्थान पर फसल अच्छी होने से संतुलन की स्थिति बन सकेगी. अज्ञात संक्रामक रोगों के प्रति सावधानी की आवश्यकता होगी. समाज में अनुशासन और परिश्रम की भावना बढ़ेगी. प्रशासन में कठोरता आ सकती है. गर्मी अधिक होने से जलजनित रोग और त्वचा संबंधी समस्याएं बढ़ सकती हैं, इसलिए सावधानी जरूरी है. इस नवसंवत्सर में सूर्य की शक्ति विशेष प्रभाव डालेगी, जिससे प्रशासन और नेतृत्व में मजबूती के साथ-साथ मौसम का तीव्र प्रभाव भी देखने को मिलेगा. सूर्य भारतीय ज्योतिष में विशिष्ट भूमिका में रहते हैं. सूर्य के प्रभाव से यह संवत्सर भारत के लिए विशेष महत्वपूर्ण रहेगा. सूर्य नवग्रह में राजा है. इस दृष्टि से पूरे भारत में राज्य स्तरीय राजनीति का प्रमुख केंद्र सेंटर हो जाएगा अर्थात दिल्ली ही संपूर्ण भारत में राजनीति के मापदंड को तय करेगी. प्रधानमंत्री ही सभी राज्यों के मुख्यमंत्री का डेवलपमेंट ग्राफ को तय करेंगे. सूर्य के राजा बनने पर अधिक शक्ति भारत के प्रधानमंत्री के हाथ में सुरक्षित रहेगी. राज्यों को विकास कार्यों के लिए केंद्र पर आश्रित रहना होगा. हिंदू नव वर्ष में भारतीय शासन में प्रशासनिक व्यवस्था और न्यायिक व्यवस्था में अलग-अलग प्रकार के परिवर्तन और संशोधन होंगे. वहीं संवैधानिक प्रणालियों पर भी पुनः अध्ययन करने की आवश्यकता अनुभव होगी और बहुत सारे संशोधन जनहित की दृष्टि से करने का संकल्प लिया जाएगा. बहुत से स्थान पर जनता के लिए न्याय तथा प्रशासन का विश्वास बना रहे, इसके लिए विशेष प्रयास भारतीय शासन व्यवस्था में करनी होगी.
संवत्सर का राजा सूर्य होने से सूर्य की शक्ति का प्रभाव अलग-अलग प्रकार से विभिन्न क्षेत्र में दिखाई देगा. सर्वप्रथम प्राकृतिक परिवर्तन होने से कहीं-कहीं खंडवृष्टि होगी कुछ स्थानों पर चतुष्पद पशुओं को पीड़ा की स्थिति और कहीं प्रजा को रोग आदि का कष्ट हो सकता है. वहीं धान्य का उत्पादन मध्यम से श्रेष्ठ होगा. राष्ट्रीय प्रमुखों के लिए यह समय चिंतनीय रहेगा, विश्व राजनीति में कूटनीति स्पष्ट रूप से दिखाई देगी. युद्ध उन्मादी राष्ट्रों के मध्य अस्थिरता उत्पन्न होगी। कहीं-कहीं न चाहते हुए आंतरिक गृह युद्ध की स्थिति दिखाई देगी. वहीं शांतिप्रिय राष्ट्रों के मध्य विश्व स्तरीय संधि का भी प्रस्ताव आने से क्षेत्र विशेष में अनुकूलता का प्रभाव रहेगा. शेयर मार्केट में विश्वस्तरीय उठापटक के चलते उतार-चढ़ाव की स्थिति बनेगी, वहीं पॉलिसी बजट से जुड़े मामलों में भी गतिरोध की स्थिति दिखाई देगी. विदेशी मुद्राओं का भंडारण एक्सपोर्ट और इंपोर्ट की पॉलिसी के तहत घटेगा. साइबर अपराध कहीं-कहीं चुनौतियों का विषय बनेगा. उच्च तकनीक या नवीन तकनीक के माध्यम से शासकीय चुनौती की परीक्षा होगी हालांकि प्रशासनिक क्षमता के बढ़ने से परिस्थिति में सुधार भी होगा. अतिथि देवो भवः का संकल्प संपूर्ण विश्व में भारत के नाम को सम्मानित करवाएगा. भारत की निर्यात नीति सहयोगी राष्ट्रों को सहयोग करेगी, वहीं उत्तम कृषि से भंडारण परिपूरित रहेगा. धर्म प्राण जनता में सुख शांति का अनुभव होगा. वैदिक और उपनिषदीय प्रभाव बढ़ेगा. धर्म, अध्यात्म, संस्कृति के प्रति वैचारिक परिवर्तन होंगे. लोगों में आस्था बढ़ेगी. तीर्थ मंदिरों की ओर लोगों का रूझान बढ़ेगा. वन औषधि एवं आयुर्वेदिक औषधि सहित सामुद्रिक वस्तुओं के मूल्य में उछाल आएगा. धातुओं के मूल्य में उतार-चढ़ाव के साथ वृद्धि होगी. ज्योतिषाचार्यो के मुताबिक इस बार के हिंदू नववर्ष में बेहद दुर्लभ संयोग बनने जा रहा है. सूर्य, बुध, चंद्रमा, शनि और राहु मीन राशि में रहने वाले हैं. यानी इस दिन अद्भुत संयोग बनेगा. इसका प्रभाव सभी राशियों के ऊपर पड़ने जा रहा है. लेकिन कुछ राशियों के ऊपर विशेष प्रभाव दिखेगा. तो मिथुन, कर्क, धनु और कुंभ राशियों के लिए सौगात लेकर आने वाली है. नौकरी की तलाश पूरी होगी. नौकरीपेशा वालों के लिए प्रमोशन और वेतन वृद्धि का योग है. पारिवारिक जीवन मे सुधार आएगा. पैतृक संपत्ति का विवाद समाप्त होगा. प्रॉपर्टी मामले में धन लाभ का योग है. यात्रा का भी योग है. भाग्य का भरपूर साथ मिलेगा. हर कार्य में सफलता मिलेगी. करियर में आगे बढ़ने के लिए नई जिम्मेदारी मिल सकती है. भविष्य में लाभ मिल सकता है. कानूनी मामलों में सफलता मिल सकती है. किसी पुराने मित्र से मुलाक़ात हो सकती है. पुराने अटके हुए कार्य है पूर्ण होंगे. आर्थिक स्थिति में सुधार होगा. नौकरी में प्रमोशन और वेतन वृद्धि का भी योग है. कर्ज से मुक्ति मिल सकती है. कार्य के कारण समाज में मान प्रतिष्ठा की वृद्धि होगी.
‘गुड़ी पड़वा‘
पुराण और ग्रंथों के अनुसार, चैत्र नवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण नवरात्रि है जिसमें देवी शक्ति की पूजा की जाती थी। रामायण के अनुसार भी भगवान राम ने चैत्र के महीने में देवी दुर्गा की उपासना कर रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी। इसीलिए चैत्र नवरात्रि पूरे भारत में, खासकर उत्तरी राज्यों में धूमधाम के साथ मनाई जाती है। हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बहुत लोकप्रिय है। महाराष्ट्र राज्य में यह ‘गुड़ी पड़वा‘ के साथ शुरू होती है, जबकि आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में, यह उत्सव ‘उगादी‘ से शुरू होता है। धार्मिक दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व है, क्योंकि ब्रह्मपुराण के अनुसार नवरात्र के पहले दिन आदिशक्ति प्रकट हुई थीं और देवी के कहने पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सूर्योदय के समय ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि निर्माण का काम शुरू किया था, इसलिए इसे सृष्टि के निर्माण का उत्सव भी कहा जाता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि संपूर्ण सृष्टि प्रकृतिमय है और हम जिसे पुरुष रूप में देखते हैं, वह भी आध्यात्मिक दृष्टि से प्रकृति यानी स्त्री रूप है। स्त्री से यहां तात्पर्य यह है कि जो पाने की इच्छा रखनेवाला है, वह स्त्री है और जो इच्छा की पूर्ति करता है, वह पुरुष है।
चैतीचंद्र महोत्सव‘
आदिकाल से ही न केवल मनुष्य, बल्कि ईश्वर भी आद्याशक्ति की उपासना करते रहे हैं। देवी स्वरूप में ऊषा की स्तुति ऋग्वेद में तीन सौ बार करने का उल्लेख है। शुक्ल प्रतिपदा को सृष्टि की रचना के साथ नौ दिनों तक आद्याशक्ति मां भगवती की आराधना का नवरात्र उत्सव प्रारंभ होता है। नवरात्रि के प्रथम दिन, नव संवत्सर की प्रथम रात्रि का चैत्र शुक्ल प्रथम दर्शन ही चैत्र चंद्र दर्शन है, जिसे उत्सव रूप में मनाया जाता है। इसे ही ‘चैतीचंद्र महोत्सव‘ कहा जाता है। इस दिन झूलेलाल और मातारानी की आराधना की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम ने अत्याचारी शासक बाली का वध कर किष्किंधा की प्रजा को मुक्ति दिलायी थी। बाली के अत्याचार से मुक्त हो प्रजा इसी दिन विजय ध्वज फहराकर उत्सव के आनंद के साथ झूम उठी थी। इस दिन नयी साड़ी पहनाकर बांस में तांबे या पीतल का लोटा और आम्र पल्लव रखकर गुड़ी बनायी जाती एवं उसका और श्रीराम-हनुमानजी की पूजा किये जाने का विधान है। द्वापर काल मवारिका में रहने वाले प्रसेनजीत की हत्या के कलंक से कलंकित श्रीकृष्ण जब मणि का पता लगाने हेतू अंधेरी गुफा में प्रवेश किये, तब समस्त ब्रजवासियों ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ कर चौत्र शुक्ल नवमी तक सोपवास माता भगवती की आराधना की एवं रात्रि जागरण किया था, ताकि श्री कृष्ण गुफा से सकुशल लौट आएं. नव संवत्सर के दिन प्रातः पंचांग की पूजा करके वर्षफल का श्रवण किया जाता है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें