पंडित श्री तिवारी ने बताया कि सोलह कलाओं के कृष्णावतार में भगवान ने असत्य पर सत्य की विजय और धर्म की स्थापना के लिए अर्जुन का सारथी बनना स्वीकार किया था। सहनशीलता मनुष्य को श्रेष्ठ बनाती है। देवकी और वसुदेव ने अपनी सात संतानों को काल के गाल में जाते हुए देखा और उनका दुख बर्दाश्त किया। इसी के परिणामस्वरुप कृष्ण का प्राकट्य हुआ। उन्होंने कहा कि सतयुग में भगवान गरुण की पीठ पर बैठकर आते हैं जबकि त्रेतायुग में भगवान मानव रुप में मानव मूल्यों को निभाते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रुप में आते हैं। श्रीकृष्ण का जन्म मनुष्य जीवन के उद्धार के लिए हुआ है। कंस ने उनके जन्म लेने को रोकने के लिए अथक प्रयास किए लेकिन सफल नहीं हो पाया। अंत मेंं अपने पापों का घड़ा भरने पर श्रीकृष्ण के हाथों मरकर मोक्ष की प्राप्ति की। उन्होंने बताया मनुष्य जीवन सबसे उत्तम माना जाता है। इसी योनी में भगवान भी जन्म लेना चाहते हैं। जिससे वे अपने आराध्य ईश्वर की भक्ति कर सके। श्रीकृष्ण ने भागवत गीता के माध्यम से बुराई व सदाचार के बीच अंतर बताया। ईश्वर को धन दौलत व यज्ञों से कोई सरोकार नहीं है। वह तो केवल स्वच्छ मन से की गई आराधना के अधीन होता है। दाने परिवार की ओर से अश्वनी दाने, देवेन्द्र दाने, अशोक ठाकुर, भय्यु प्रजापति, रितेश राठौर, सूरज मोर्य, अनमोल, मुकेश मेवाड़ा आदि ने पूजा अर्चना की।
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