सीहोर : भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्र का मान नष्ट करके गिर्राज पूजा कराई : पंडित गिरिजा शंकर तिवारी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

सीहोर : भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्र का मान नष्ट करके गिर्राज पूजा कराई : पंडित गिरिजा शंकर तिवारी

Krishna-puja-sehore
सीहोर। शहर के शुगर फैक्ट्री स्थित मोर गार्डन में दाने परिवार के तत्वाधान में जारी सात दिवसीय भागवत कथा के पांचवे दिन कथा वाचक पंडित गिरिजाशंकर तिवारी ने श्रीकृष्ण भगवान के छप्पन भोग गोवर्धन पूजा के महत्व को बताया। इस दौरान भगवान गोवर्धन का पूजन भी किया गया। भगवान इन्द्र जब प्रकोप में थे तब उन्होंने वर्षा करके कहर बरपाया। चारों ओर हाहाकार मच गई। गांव जलमग्न होने लगे तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उंगली पर उठा लिया। इससे गांव के सभी लोग गोवर्धन पर्वत के नीचे गए और वहां शरण ली।  भगवान श्रीकृष्ण ने इन्द्र का मान नष्ट करके गिर्राज पूजा कराई थी। तब सभी बृजवासियों ने गोवर्धन पहुंचकर गोवर्धन पर्वत का पूजन किया और 56 भोग लगाया। उन्होंने कहा कि आज भी वृदांवन में बांके बिहारी को दिन में आठ बार भोग लगाया जाता है। पूरे सात दिन भगवान श्रीकृष्ण ने भूखे प्यासे गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा था।

 

पंडित श्री तिवारी ने बताया कि सोलह कलाओं के कृष्णावतार में भगवान ने असत्य पर सत्य की विजय और धर्म की स्थापना के लिए अर्जुन का सारथी बनना स्वीकार किया था। सहनशीलता मनुष्य को श्रेष्ठ बनाती है। देवकी और वसुदेव ने अपनी सात संतानों को काल के गाल में जाते हुए देखा और उनका दुख बर्दाश्त किया। इसी के परिणामस्वरुप कृष्ण का प्राकट्य हुआ। उन्होंने कहा कि सतयुग में भगवान गरुण की पीठ पर बैठकर आते हैं जबकि त्रेतायुग में भगवान मानव रुप में मानव मूल्यों को निभाते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के रुप में आते हैं। श्रीकृष्ण का जन्म मनुष्य जीवन के उद्धार के लिए हुआ है। कंस ने उनके जन्म लेने को रोकने के लिए अथक प्रयास किए लेकिन सफल नहीं हो पाया। अंत मेंं अपने पापों का घड़ा भरने पर श्रीकृष्ण के हाथों मरकर मोक्ष की प्राप्ति की। उन्होंने बताया मनुष्य जीवन सबसे उत्तम माना जाता है। इसी योनी में भगवान भी जन्म लेना चाहते हैं। जिससे वे अपने आराध्य ईश्वर की भक्ति कर सके। श्रीकृष्ण ने भागवत गीता के माध्यम से बुराई व सदाचार के बीच अंतर बताया। ईश्वर को धन दौलत व यज्ञों से कोई सरोकार नहीं है। वह तो केवल स्वच्छ मन से की गई आराधना के अधीन होता है। दाने परिवार की ओर से अश्वनी दाने, देवेन्द्र दाने, अशोक ठाकुर, भय्यु प्रजापति, रितेश राठौर, सूरज मोर्य, अनमोल, मुकेश मेवाड़ा आदि ने पूजा अर्चना की। 

कोई टिप्पणी नहीं: