सीहोर : मरीह माता मंदिर में सोमवार को भव्य भंडारे का आयोजन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 5 अप्रैल 2025

सीहोर : मरीह माता मंदिर में सोमवार को भव्य भंडारे का आयोजन

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सीहोर।  हर साल की तरह इस साल भी नवरात्रि के पावन अवसर पर शहर के विश्रामघाट स्थित मरीह माता मंदिर में आस्था और उत्साह के साथ पर्व मनाया जा रहा है।  नवरात्रि के पावन अवसर पर प्रतिदिन मंदिर में सुबह हवन-पूजन के पश्चात कन्या भोज और महिला मंडलों को द्वारा भजन कीर्तन किया जा रहा है। शनिवार को नवरात्रि के सातवें दिन कालरात्रि मां का पूजन अर्चन किया गया, अब रविवार को महाष्टमी को रात्रि बारह बजे सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं के द्वारा आरती की जाएगी और सोमवार को भंडारे का आयोजन किया जाएगा। चौसट योगिनी मरीह माता मंदिर के व्यवस्थापक गोविन्द मेवाड़ा, रोहित मेवाड़ा, जितेन्द्र तिवारी, ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश शर्मा, पंडित उमेश दुबे, सुनील चौकसे आदि ने दुर्गा सप्तशती का पाठ किया।


जिला संस्कार मंच के जिला संयोजक मनोज दीक्षित मामा ने बताया कि मरीह माता मंदिर में हर नवरात्रि पूरी आस्था के साथ मनाई जाती है। वर्ष में चार नवरात्रि आती है, इसमें दो गुप्त और दो प्रकट होती है। इन दिनों चैत्र नवरात्रि का आयोजन किया जा रहा है। नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा की पूजा को समर्पित है। इस दौरान माता रानी के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिसमें सातवां रूप माता कालरात्रि का है। बता दें नवरात्रि के सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है। उनकी आराधना से सभी बुरी शक्तियां दूर रहती हैं। साथ ही व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और शत्रुओं का भी नाश हो जाता है। माता का रंग काला होने के कारण इन्हें कालरात्रि कहा गया है। वहीं अगर आप मां कालरात्रि की पूजा कर रहे हैं तो यह व्रत कथा का पाठ करना जरूरी है। वर्ना पूजा अधूरी मानी जाती है। देवी भागवत पुराण के अनुसार कालरात्रि को काली का ही रूप माना जाता है। काली मां इस कलियुग मे प्रत्यक्ष फल देने वाली हैं। काली, भैरव तथा हनुमान जी ही ऐसे देवी व देवता हैं, जो शीघ्र ही जागृत होकर भक्त को मनोवांछित फल देते हैं। काली के नाम व रूप अनेक हैं। किन्तु लोगों की सुविधा व जानकारी के लिए इन्हें भद्रकाली, दक्षिण काली, मातृ काली व महाकाली भी कहा जाता है। दुर्गा सप्तशती में महिषासुर के वध के समय मां भद्रकाली की कथा वर्णन मिलता है कि युद्ध के समय महाभयानक दैत्य समूह देवी को रण भूमि में आते देखकर उनके ऊपर ऐसे बाणों की वर्षा करने लगा, जैसे बादल मेरूगिरि के शिखर पर पानी की धार की बरसा रहा हो। तब देवी ने अपने बाणों से उस बाण समूह को अनायास ही काटकर उसके घोड़े और सारथियों को भी मार डाला। साथ ही उसके धनुष तथा अत्यंत ऊंची ध्वजा को भी तत्काल काट गिराया। धनुष कट जाने पर उसके अंगों को अपने बाणों से बींध डाला। और भद्रकाली ने शूल का प्रहार किया। उससे राक्षस के शूल के सैकड़ों टुकड़े हो गये, वह महादैत्य प्राणों से हाथ धो बैठा।

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