संविधान द्वारा प्रदत्त शांति से जीवन यापन करने,का अधिकार,छिन गया था.गरिमा के साथ जीना स्वप्न हो गया था.भय के इस माहौल का खात्मा बागियों के इस आत्मसमर्पण से संभव हुआ.यह भी एक संयोग है कि यह समर्पण उस दिन हुआ जो संविधान के निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म दिवस था जिन्होंने संविधान के माध्यम से सांवेधानिक मूल्यों व मौलिक अधिकारों का तोहफा दिया परन्तु बागी समस्या के दौर में ये अधिकार सपना हो गये. आज जब हम उस आत्मसमर्पण को याद करने हम एकत्रित हुए हैं तब हमें यह विचार करना है कि किस तरह खतरों से खेलते हुए अपनी जान की परवाह न कर बागियों को अहिंसा का मार्ग दिखाया गया तथा संविधान द्वारा प्रदत्त मूल्यों की रक्षा की गई. इस अवसर पर हमें भी यह संकल्प लेना है कि जहां भी सांवेधानिक मूल्यों कि हनन हो, मौलिक अधिकारों पर चोट की जाये तब हम चुप नहीं रहें स्वयं तो इसमें अग्रणी रहे ही दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करें ताकि समाज में न्याय,समानता,बंधुता का भाव बढ़े।सबको गरिमा पूर्ण जीवन का अधिकार मिले. यह आत्म समर्पण को स्मरण करने का दिवस तो है ही साथ ही उन मूल्यों की पुनर्स्थापना का अवसर भी है जो हमें हमारे मार्गदर्शक डॉ एस एन सुब्बाराव जी व अन्य गांधीवादी विचारकों ने हमें दिए हैं. इस कार्यक्रम में श्योपुर से जयसिंह जादौन रामदत तोमर श्रीमती अनामिका पाराशर दौलत राम गोड़ राधावल्लभ जागिड़ वीरमदेव बैरवा हर्षवर्धन सिंह ओम नायक ने भाग लिया.
जौरा, (आलोक कुमार). महात्मा गांधी सेवाश्रम जौरा चंबल घाटी में वागी समर्पण दिवस के अवसर पर एक संगोष्ठी का आयोजित शान्ति एवं अहिंसा पर हुआ. जिसमें गांधीवादी पी व्ही राजगोपाल, जलपुरुष राजेन्द्र सिंह,तरुण भारत संघ राजस्थान, पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा,गौतम सागर राड़ा,पूर्व मंत्री झारखंड,दशरथ कुमार,मंत्री सर्व सेवा संघ राजस्थान, जिल बहन पंकज,उपाध्याय विधायक जौरा, अखिल महेश्वरी जी अध्यक्ष नगर पालिका वरिस्ठ पत्रकार जयंत तोमर व 12 राज्यों से आये राष्ट्रीय युवा योजना के प्रतिनिधियों सहित चम्बल घाटी के प्रबुद्धजनों सहित आत्मसमर्पण कारी वागी भाइयों ने भाग लिया तथा सभी अतिथियों ने इस अवसर पर प्रेरक उद्बोधन दिया और आज के दौर में कैसे आगे बढ़ा जाए उस पर मार्गदर्शन दिया. इस अवसर पर श्योपुर के वरिष्ठ समाजसेवी जयसिंह जादौन ने कहा चंबल घाटी में हुआ बागियों का आत्मसमर्पण हिंसा से अहिंसा की और मुड़ने तथा गांधी जी के आदर्शों को स्वीकार कर संत बिनोवा भावे, लोकनायक जयप्रकाश नारायण व मानवता के अग्रदूत डॉ एस एन सुब्बाराव जी की प्रेरणा से अपराधी जीवन का त्याग एक ऐसा उदाहरण है जो विश्व में दूसरा नहीं मिलता है.एक समय था जब चंबल घाटी में शाम के बाद सड़कें सूनी हो जाती थी. बागियों के भय से लोगों का सामान्य जीवन जीना कठिन हो गया था.
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