मधुबनी : फसल अवशेष जलाने वाले किसानों को योजनाओं के लाभ से होना पड़ सकता है वंचित : डीएम - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 7 अप्रैल 2025

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मधुबनी : फसल अवशेष जलाने वाले किसानों को योजनाओं के लाभ से होना पड़ सकता है वंचित : डीएम

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मधुबनी (रजनीश के झा)। जिलाधिकारी अरविन्द कुमार वर्मा की अध्यक्षता में फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर समाहरणालय स्थित सभाकक्ष में अंतर विभागीय कार्य समूह की बैठक आयोजित की गई। जिलाधिकारी ने फसलों के अवशेष को खेतों में जलाने  से होने वाले नुकसान को लेकर उपस्थित सभी संबंधित विभागों के अधिकारियों को पूरी गंभीरता से कार्य करने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि इसका व्यापक प्रचार प्रसार करवाये। उन्होंने किसान चौपालों  में कृषि वैज्ञानिकों की उपस्थिति में किसानों को फसल जलाने से होने वाले नुकसान एवम पराली प्रबंधन की जानकारी देने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि विद्यालयो में बच्चों को फसल अवशेष प्रबंधन की जानकारी दे। उन्होंने बताया कि फसल अवशेष को जलाने से खेतो की उर्वरा शक्ति को काफी नुकसान पहुंचती है एवं प्रकृति तथा मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि कृषि विभाग की ओर से कई कृषि यंत्र किसानों को अनुदान पर उपलब्ध कराया जा रहा है ताकि किसान खेतों में फसल अवशेष को ना जला कर उसे यंत्र द्वारा खाद के रूप में उपयोग कर सकें। उन्होंने कहा कि फसल अवशेष जलाने वाले किसानों को  कृषि कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित होना पड़ सकता है। जिलाधिकारी ने इसके संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि फसल अवशेषों को खेतो में जलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति तथा मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । फसल अवशेष को खेतो में जलाने से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है  जिसके  कारण पर्यावरण प्रदूषित होता। उन्होंने कहा की फसल अवशेष को खेतों में जलाने से सांस लेने में तकलीफ आंखों में जलन नाक एवं गले की समस्या बढ़ती है। मिट्टी का तापमान बढ़ने के कारण मिट्टी में उपलब्ध सूक्ष्म जीवाणु, केचुआ आदि मर जाते हैं, साथ ही जैविक कार्बन, जो पहले से हमारी मिट्टी में कम है और भी जलकर नष्ट हो जाता है, फल स्वरुप मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो जाती है। उन्होंने कहा कि एक टन पुआल जलाने से वातावरण को होने वाले नुकसान के कारण 3 किलोग्राम पार्टिकुलेट मैटर, 60 किलोग्राम कार्बन मोनोक्साइ, 1460 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड 199 किलोग्राम राख, 2 किलोग्राम सल्फर डाईऑक्साइड उत्सर्जित होता है। उन्होंने कहा कि पुआल जलाने से मानव स्वास्थ्य को काफी नुकसान भी होता है। सांस लेने में तकलीफ, आंखों में जलन, नाक में तकलीफ,गले की समस्या आदि उत्पन्न होती है। उन्होंने कहा कि एक टन पुआल नहीं जलाकर उसे मिट्टी में मिलाने से निम्नांकित मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त होता है। नाईट्रोजन : 20 से 30 किलोग्राम, पोटाश : 60 से 100 किलोग्राम, सल्फर : 5 से 7 किलोग्राम, आर्गेनिक कार्बन* : 600 किलोग्राम प्राप्त होता है।

उन्होंने कहा कि पुआल नहीं जलाकर उसका प्रबंधन करने में उपयोगी कृषि यंत्र, स्ट्राॅ बेलर, हैप्पी सीडर, जीरो टिल सीड- कम-फर्टिलाइजर ड्रिल, रीपर-कम,बाईंडर,स्ट्राॅरीपर, रोटरी मल्चर 

 इन यंत्रों पर अनुदान की राशि बढ़ा दी गई है। जिलाधिकारी ने  किसान भाइयों एवं बहनों से अपील है करते हुऐ कहा है कि यदि फसल की कटनी हार्वेस्टर से की गई हो तो खेत में फसलों के अवशेष पुआल, भूसा आदि को जलाने के बदले खेत की सफाई करने हेतु बेलर गमशीन का उपयोग करें।

अपने फसलों के अवशेष को खेत में जलाने के बदले उसमें वर्मी कंपोस्ट बनाएं या मिट्टी में मिलाये अथवा पलवार विधि से खेती कर मिट्टी को बचाकर संधारणीय कृषि पद्धति में अपना योगदान दें । उक्त बैठक में जिला कृषि पदाधिकारी ललन कुमार चौधरी, सहायक निदेशक, कृषि अभियंत्रण, सहित अन्तर्विभागीय कार्य समूह के सभी सदस्य उपस्थित थे। 

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