आलेख : वाटर ऑन ह्वील्स -फलता-फूलता पानी का कारोबार, बहुत महंगा है सफर प्यास बुझाने का - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 6 अप्रैल 2025

demo-image

आलेख : वाटर ऑन ह्वील्स -फलता-फूलता पानी का कारोबार, बहुत महंगा है सफर प्यास बुझाने का

सदियों से देश जिस समस्या से पीड़ित रहा है, वो दौर फिर आने वाला है। भीषण गर्मी और पानी की कमी। यह एक राष्ट्रीय समस्या है। आज़ादी के बाद अनेकानेक योजनाएं बनाने के बाद भी यह समस्या आज भी शाश्वत है। देश के अनेक हिस्सों में पानी की कमी की वजह से त्राहि-त्राहि मच जाती है। नदी-तालाबों, बावड़ियों, नाड़ियों सभी जलस्त्रोत सूखने लगते हैं। नलों में धार पतली हो जाती है। बावजूद इन सबके, देश का एक तबका ऐसा है जो संकट के दौर में भी अपना धंधा ढूँढ़ लेता है और अपने मुनाफे के लिए इस मानवीय त्रासदी का भरपूर दोहन करता है। यह तबका है पानी का धंधा करने वाले वाटर टैंकर्स का। देश के कमोबेश सभी हिस्सों में पानी का यह धंधा हर साल फलता-फूलता जा रहा है। राजस्थान में भी यही हाल है। हर जिला पानी की समस्या और टैंकर माफियाओं की समानांतर व्यवस्था से त्रस्त है। राजस्थान में जीवन की इस बुनियादी आवश्यकता की पूर्ति के सफ़र की डगर बहुत लंबी रही है। बावड़ियां और कुंड,जोहरों और नाड़ियों जैसे जलस्रोत बारिश के पानी को इकट्ठा करने में हमेशा मददगार रहे हैं। तालाब तो ग्रामीण जलापूर्ति का आधार रहे हैं। बुजुर्गों के अनुसार आधुनिक जलापूर्ति के साधनों और माध्यमों के विकास से पहले गाँवों में कई किलोमीटर दूर से ऊंट पर चोखड़ यानी चार घड़े बोरे में डाल कर रस्सी से बांध कर और लकड़ी के ढांचे में घड़े रख कर लाते थे फिर छठे दशक के मध्य में  ऊंट की पीठ पर पलाण पर दोनों पासे करीब सत्तर लीटर की डरमनूमा लोहे की टंकी में पानी डालकर लाने लगे। सातवें दशक में ऊंट-गाड़ा आया, फिर 1970 के आसपास में पानी के लिए टंकियां आईं जिसमें चार सौ लीटर तक पानी लाने लगे। नौवे दशक में फिर पाईप लाइन से पानी के लिए डिग्गियां बनीं, ओवरहेड टंकियां भी बनने लगीं। जल संकट के समाधान के लिए विभिन सरकारों ने कई योजनाएं बनाई हैं। मोदी सरकार ने 15 अगस्त 2019 को हर घर जल पहुंचाने के उद्देश्य से जल जीवन मिशन योजना की शुरूआत की। इसका उद्देश्य 2024 तक प्रत्येक घर में पीने के लिए नल से जल पहुंचाया जाए लेकिन विभाग की वेबसाइट के अनुसार राजस्थान में 1,07,74,390 परिवारों में से सिर्फ़ 60,46,165  यानी करीब 57 फीसद परिवारों तक ही यह सुविधा पहुंची है।


भारत दुनिया के उन  देशों में है कि जहाँ भूजल का दोहन निर्ममता से किया जा है। राजस्थान देश के 10 फ़ीसदी भू-भाग पर फैला हुआ है, लेकिन पानी की उपलब्धता पूरे देश का महज एक फ़ीसदी ही है। अत्यधिक दोहन के कारण भू-जल की स्थिति काफी चिंताजनक है। प्रदेश के 299 ब्लॉक में से सिर्फ 30 यानी 12 प्रतिशत ही सुरक्षित बचे हैं। इनमें से 88 फीसदी ब्लॉक क्रिटिकल, सेमी क्रिटिकल और अत्यधिक दोहित हैं। पिछले तीन दशक में भू-जल का दोहन 114 प्रतिशत तक बढ़ा है। साल 2023 में राजस्थान में 149 प्रतिशत पानी का दोहन राजस्थान में किया गया है। पानी की जरूरत पूरी करने के लिए महीने में दो-तीन टैंकरों की जरूरत होती है। ये टैंकर पास तालाब या आस-पास की निजी कुओं से पानी भरकर लाए जाते हैं। एक टैंकर दूरी के अनुसार 300 से 800 तक  रुपए तक वसूलते हैं। अगर दूरी पानी के स्त्रोत से 10-15 किमी है तो यह कीमत ढाई से तीन हजार रुपए तक भी हो जाती है। यह पानी नहर किनारे के किसी कुएं या पुराने बेरे से भरकर लाया जाता है। अगर किसी तालाब में पानी बचा है तो उस पानी की आपूर्ति भी टैंकर वाले करते हैं। चूंकि पश्चिमी राजस्थान में अधिकतर तालाब सार्वजनिक हैं या पंचायत के हैं। इसके बावजूद सभी लोगों के हक के पानी को टैंकर माफिया मुनाफा बटोरकर बेचते हैं। 


न नियमों का पालन न शुद्धता की गारंटी 

लोग इन्हीं टैंकरों के भरोसे ही खुद के साथ-साथ अपने पशुधन को भी जिंदा रखते हैं क्योंकि पशुओं के लिए भी पीने के पानी की कोई अलग से व्यवस्था नहीं है। दूर-दराज के गांव और पाकिस्तान सीमा से लगे हुए गांव आज भी पानी के पारंपरिक स्त्रोतों पर ही निर्भर हैं। जोधपुर, बीकानेर, पाली, जैसलमेर, बाड़मेर सहित पश्चिमी राजस्थान में कमोबेश यही हालात हैं। लोग महीने में पीने के पानी के लिए 4-5 हजार रुपए तक खर्च को भी मजबूर हैं। 


 टैंकर से पानी आपूर्ति करने वालोंने कोई लाइसेंस नहीं ले रखा न ही किसी सरकारी विभाग से अनुमति ले रखी है। दिलचस्प यह भी कि जलदाय विभाग के  अधिकांश अधिकारियों को मालूम तक नहीं कि प्राइवेट टैंकर सप्लायर किस कानूनी दायरे में काम करते हैं और कौन उन्हें पानी बेचने की अनुमति देता है। जबकि केन्द्रीय भू-जल प्राधिकरण बल्क वाटर सप्लायर्स के लिए एनओसी जारी करता है। इसके लिए प्राधिकरण ने दिशा-निर्देश भी बनाए हुए हैं। हालांकि प्राधिकरण ने राज्य सरकार को भी अपने स्तर पर गाइडलाइन बनाने की बात कही है, लेकिन राजस्थान में कोई गाइडलाइन नहीं है। हकीकत यह कि कोई भी टैंकर संचालक गाइडलाइन की पालना नहीं कर रहा है।  राज्य के दो बड़े शहरों जयपुर-जोधपुर में ही हजारों टैंकर संचालक सैंकड़ों बोरवेल से पानी खींचकर बेच रहे हैं। इनके पास न तो किसी तरह की कोई एनओसी है और न ही इस पानी की शुद्धता को मापने का कोई सिस्टम। जबकि गाइडलाइन के अनुसार पानी का उपयोग केवल पीने या घरेलू उद्देश्यों के लिए होना चाहिए। साथ ही जहां बोरवेल लगा हुआ है वह जगह कम से कम 200 स्क्वायर मीटर होनी चाहिए। इसके अलावा ग्राउंट वाटर क्वालिटी सर्टिफिकेट भी सप्लायर के पास होना जरूरी है। टैंकर संचालक इसी पानी को फैक्ट्री, कारखानों या निर्माण कंपनियों के लिए भी आपूर्ति करते हैं। इनके पास पानी की शुद्धता मापने की व्यवस्था भी नहीं है। 


प्रदेश में कारखानों के लिए पानी के इंतजाम के लिए कोई अलग से व्यवस्था नहीं है। बल्कि इन्हें भी वहीं से पानी मिलता है जो पेयजल का भी स्त्रोत हैं। इनके लिए कोई निगरानी व्यवस्था नहीं है। ज़ाहिर है, टैंकर से पानी आपूर्ति करने के लिए न तो टैंकर चालक कोई लाइसेंस लेते हैं और न ही पानी की शुद्धता की कोई गारंटी देते हैं। इस पानी की शायद ही कभी जांच होती है या इसे ट्रीट किया जाता है, जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर खतरे हो जाते हैं। केंद्रीय भूमि जल प्राधिकरण के नियमानुसार तो अनुसार, भूजल निकासी और निजी टैंकरों के जरिए जल आपूर्ति के लिए प्राधिकरण से अनापत्ति प्रमाण पत्र हासिल करना ज़रूरी है। यहाँ तक कि आपूर्ति किए गए पानी को भारतीय मानक ब्यूरो का भी पालन करना चाहिए लेकिन व्यवहार में नतीज़ा निकलता है शून्य और अवैध रूप से पानी बेचने का कारोबार फलता-फूलता रहता है।





IMG-20240716-WA0002


हरीश शिवनानी

(वरिष्ठ स्वतन्त्र पत्रकार)

ईमेल : shivnaniharish@gmail.com

संपर्क : 9829210036

कोई टिप्पणी नहीं:

undefined

संपर्क फ़ॉर्म

नाम

ईमेल *

संदेश *