हो जो भी पश्चिम बंगाल के हालात तो यही बता रहे हैं कि ‘मिनी कश्मीर’ बनने की हालत में खड़ा है पश्चिम बंगाल। देश का इकलौता ऐसा राज्य है, जहां हर महीने कभी पर्वो के नाम पर तो कभी तुष्टिकरण के सियासी नारों के चलते हिंसा होती रहती है। हाल यह है कि पश्चिम बंगाल, राजनीतिक हिंसा के अपने रक्त चरित्र की वजह से पूरे देश में खराब छवि बना चुका है। कोई भी स्वतंत्र नहीं घूम सकता। मतलब साफ है पश्चिम बंगाल भ्रष्टाचार और सांप्रदायिक हिंसा का अड्डा बन गया है। बंगाल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत धूमिल हो रही है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है ’कश्मीर’ बनते पश्चिम बंगाल में कब लगेगा राष्ट्रपति शासन? दरअसल, वक्फ कानून का आम मुसलमान से कोई लेना-देना नहीं है, पर उसे ये समझाया जा रहा है कि सरकार मस्जिदों, कब्रिस्तानों और ईदगाहों पर कब्जा कर लेगी। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ऐलान कर दिया कि वक्फ कानून के खिलाफ देश भर में 1985 जैसा आंदोलन चलाया जाएगा। जैसे शाहबानो केस में उस वक्त राजीव गांधी की सरकार को झुकाया था, वैसे ही मोदी सरकार को वक्फ संशोधन कानून वापस लेने पर मजबूर किया जाएगा। बोर्ड की तरफ से देश भर की मस्जिदों को एक ड्राफ्ट भेजा गया है जिनके आधार पर हर जुमे की नमाज के बाद मौलानाओं को तकरीरें करनी है
फिरहाल, पश्चिम बंगाल में हिंसा का नग्न तांडव जारी है। राज्य में अब हिंदू सुरक्षित नहीं हैं। हालात बद से बदतर हो चुकी है. एक वर्ग के लोग हिन्दुओं के घर से खींच-खीच कर मार रहे हैं, लहूलुहान कर रहे है। विरोध प्रदर्शन के नाम पर मुर्शिदाबाद में घरों से खींच कर तीन लोगों जिंदा जला दिया गया। धुलियान में हिंदुओं की दर्जनों दुकानों को लूटा गया. हिंसा का हाल यह है वहां हिंदू त्योहार मनाने के लिए कोर्ट जाना पड़ता है. यह सब ममता बनर्जी तुष्टीकरण की राजनीति के चलते हो रहा है। हिंसा के हालात इतने बिगड़ गए है कि जो काम केन्द्र सरकार को करना चाहिए वह काम कलकत्ता हाई कोर्ट के जरिए हिंसा ग्रस्त इलाकों में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की तैनाती का आदेश देना पड़ा। आदेश में साफ-साफ कहा गया है कि हिंसा को रोकने के लिए बंगाल सरकार ने पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों में समुदायों के बीच हिंसा की लगातार घटनाएं हुई हैं। आज तक व्याप्त अशांत स्थिति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। मतलब साफ है वक्फ वोर्ड की आड़ में पश्चिम बंगाल में एक वर्ग को खुली छूट देकर हिन्दुओं का कत्लेआम कराया जा रहा है। कुछ लोगों ने तो स्थिति की तुलना 1990 में कश्मीरी पंडितों के पलायन से करते हुए चेतावनी दी कि अगर तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो बंगाल में भी ऐसे हालात पैदा हो जाएंगे।
माना कि इस हिंसा से हिन्दू वर्ग में आका्रेश का ज्वाला दहकेगी और इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा, लेकिन भाजपा को यह नहीं भूलना चाहिए कि हिन्दुओं का एक बड़ा वर्ग उसके साथ है। ऐसे में सियासी लाभ के लिए पश्चिम बंगाल के हिन्दुओ को बांग्ब्लादेश की तरह आग में नहीं झोकना चाहिए और ममता की गुंडागर्दी व अराजकता पर ब्रेक लगाने के लिए कुछ और ना सही राष्ट्रपति शासन तो लगा ही सकती है। इससे भविष्य में हिंसा को रोकने और हिंदुओं को आश्वस्त करने में मदद मिलेगी कि उन्हें उनके हाल पर नहीं छोड़ा गया है। खासकर जब हाईकोर्ट ने आदेश दे ही दिया है तो पूरे पश्चिम बंगाल को सेना के हवाले करने में देर किस बात की। यहां जिक्र करना जरुरी है कि मुर्शिदाबाद, मालदा, नदिया और दक्षिण 24 परगना जैसे जिलों में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं हुई हैं लेकिन राज्य की तृणमूल कांग्रेस सरकार ने ‘तुष्टिकरण’ की राजनीति के कारण ‘आंखें मूंद’ ली हैं। कलकत्ता उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करते हुए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की तैनाती का आदेश देना पड़ा, जिससे ‘राज्य की प्रशासनिक विफलता’ उजागर हुई। कोर्ट ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा हाल के दिनों में वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान सांप्रदायिक अशांति को नियंत्रित करने के लिए किए गए उपाय पर्याप्त नहीं थे।
बेंच ने यह भी कहा कि अगर पहले सीएपीएफ तैनात किया गया होता, तो स्थिति इतनी गंभीर और अस्थिर नहीं होती। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि केंद्रीय सशस्त्र बलों की पहले तैनाती से स्थिति को कम किया जा सकता था, क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि समय पर पर्याप्त उपाय नहीं किए गए। खंडपीठ ने इस बात पर जोर दिया कि स्थिति गंभीर और अस्थिर है। बेंच ने अपराधियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करने और निर्दोष नागरिकों पर हुए अत्याचारों को रोकने की जरूरत पर बल दिया। आदेश में कहा गया कि जब लोगों की सुरक्षा खतरे में हो, तो संवैधानिक न्यायालय मूक दर्शक नहीं रह सकता और तकनीकी बचाव में उलझ नहीं सकता। क्योंकि मुर्शिदाबाद सहित कई जिलों में हिंसा के बाद कश्मीरी हिन्दुओं की तर्ज पर लोग छिप-छिप कर पलायन कर रहे हैं। स्कूलों में शरण ले रहे हैं. इनमें महिलाएं और छोटे बच्चे भी शामिल हैं. पलायन करने वालों का कहना है कि वहां लूटपाट और घरों में आग लगाने की घटनाएं हुई हैं. बता दे, वक्फ कानून के विरोध में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हिंसा भड़क गई. उपद्रवियों ने कई इलाकों में पथराव किया. आगजनी की. ट्रेनें रोकीं. कई दफ्तरों को नुकसान पहुंचाया. साथ ही पुलिस वालों को भी निशाना बनाया. हिंसा में 3 लोगों की मौत हो चुकी है. हिंसक झड़प में 15 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं।
हिंसा में धार्मिक कट्टरपंथियों के डर से मुर्शिदाबाद के धुलियान से 400 से अधिक हिंदू नदी पार कर लालपुर हाई स्कूल, देवनापुर-सोवापुर जीपी, बैसनबनगर, मालदा में शरण लिए हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वक्फ कानून को लेकर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि पश्चिम बंगाल में ये कानून लागू नहीं किया जाएगा. यह कानून केंद्र सरकार ने बनाया है, इसलिए जवाब भी केंद्र सरकार से ही मांगा जाना चाहिए. लेकिन सवाल तो यही है जब कानून लागू ही नहीं करना है तो एक वर्ग को भड़काकर किसके लिए हिंसा करायी जा रही है। दुसरा बड़ा सवाल है कि जब सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून के खिलाफ़ दायर याचिका पर 16 अप्रैल को सुनवाई होगी तो हिंसक विरोध प्रदर्शन देशभर में क्यों हो रहे हैं? पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून के विरोध की आग धधक उठी. यहां प्रदर्शन हिंसा में क्यों तब्दील हो गया. वक़्फ़ कानून को लेकर देश के कई हिस्सों में मुस्लिम समुदाय लगातार प्रोटेस्ट कर रहा है। पश्चिम बंगाल में तो प्रोटेस्ट और भी गंभीर होते जा रहे हैं. सामाजिक ताना-बाना टूट चुका है। योगी ने कहा ‘‘आश्चर्य होता है कि यह वही देश है जिसमें वक्फ के नाम पर लाखों एकड़ जमीन कब्जा ली गयी है। उनके (कब्जा करने वालों के) पास कोई कागज नहीं, कोई राजस्व का रिकॉर्ड नहीं है और जब से (वक्फ) संशोधन विधेयक पारित हुआ और कार्रवाई हो रही है तो इसके लिए हिंसा भड़काई जा रही है।’’ योगी ने कहा, ‘‘पश्चिमी बंगाल के मुर्शिदाबाद में तीन हिंदुओं की उनके घरों से खींचकर हत्या कर दी गयी। ये सब कौन हैं, ये वही दलित, वंचित और गरीब हैं जिसको इस जमीन का सर्वाधिक लाभ मिलने वाला है।’’
क्षेत्रीय राजनीति और हिंसा
पश्चिम बंगाल में हिंसा का दौरा 1960 के बाद शुरू हुआ. उसके बाद 1967 में राज्य में लेफ्ट की सरकार आई जो 2011 तक यानि 34 साल तक रही. एक आकड़े के मुताबिक इन 34 वर्षों के दौरान राज्य में राजनीतिक हिंसा में 28 हजार लोग मारे गए. ममता बनर्जी के नेतृत्व में हुए नंदीग्राम और सिंगुर आंदोलन को पश्चिम बंगाल की सरकार ने जिस हिंसात्मक तरीके से दबाया वो ताबूत में आखिरी कील साबित हुई और 34 साल की लेफ्ट सरकार का पतन हुआ. लोगो को उम्मीद जगी कि अब सरकार बदलने के बाद पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा खत्म हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पंचायत चुनाव हो या विधानसभा-लोकसभा चुनाव, पश्चिम बंगाल में हिंसा कम नहीं हुई. अब तो बिना किसी चुनाव के भी राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या और उन पर हमला आम बात हो गई है.
तो आखिर कैसे बदलेगी तस्वीर
बंगाल में लेफ्ट के 34 साल और ममता बनर्जी के 8 साल के कार्यकाल में राजनीतिक हिंसा की तस्वीर बदलती नजर नहीं आई. ऐसे में लोगो की उम्मीद अब किसी तीसरे विकल्प पर है. यह विकल्प 2026 के विधानसभा चुनावों में तय होगा. 2026 में पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव में टीएमसी, लेफ्ट, कांग्रेस और बीजेपी चारों मुख्य राजनीतिक पार्टियां होगी,. अब तक मिलीं सूचनाओं में कांग्रेस और टीएमसी का एकसाथ चुनाव लड़ना तय है. साफ है कि ऐसे में पश्चिम बंगाल की जनता के सामने लेफ्ट, टीएमसी और बीजेपी तीन विकल्प होगें, जिनमें 2 विकल्प वहां की जनता पहले ही आजमा चुकी है. ऐसे में बीजेपी अपने आप को राज्य में मजबूत विकल्प के रूप में देख रही है. शायद इसीलिए बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है.
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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