सीहोर : रविवार को किया जाएगा रात्रि बारह बजे निशा महा आरती का आयोजन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

सीहोर : रविवार को किया जाएगा रात्रि बारह बजे निशा महा आरती का आयोजन

Durga-puja-sehore
सीहोर। प्रतिवर्ष अनुसार इस वर्ष भी शहर के विश्रामघाट स्थित मरीह माता मंदिर में आस्था और उत्साह के साथ चैत्र नवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है। शुक्रवार को नवरात्र के छठवें दिन यहां पर उपस्थित श्रद्धालुओं के द्वारा सुबह वैदिक मंत्रों के द्वारा शतचंडी यज्ञ में आहुतियां दी गई, इसके पश्चात आरती का आयोजन किया गया। वहीं गौ माता और कन्याओं का पूजन किया गया। अब आगामी महाष्टमी रविवार को रात्रि बारह बजे महानिशा की महा आरती की जाएगी। इस मौके पर सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहेंगे। शनिवार को मां काल रात्रि की पूजा अर्चना की जाएगी। इसके अलावा सोमवार को नवमी का पवन अवसर पर विशाल भंडारे का आयोजन किया जाएगा। नौ दिवसीय शतचंडी यज्ञ शुक्रवार को व्यवस्थापक गोविन्द मेवाड़ा, रोहित मेवाड़ा,  जिला संस्कार मंच के जितेन्द्र तिवारी, मनोज दीक्षित मामा, पंडित उमेश दुबे, ज्योतिषाचार्य पंडित गणेश शर्मा, सुनील चौकसे के मार्गदर्शन में पूजा अर्चना की गई।


जिला संस्कार मंच के संयोजक मनोज दीक्षित मामा ने बताया कि देवी कात्यायनी की पूजा करने से भक्तजनों में शक्ति का संचार होता है और वो इनकी कृपा से अपने दुश्मनों का संहार करने में सक्षम हो पाते हैं। इनकी पूजा से हर तरह के संकट दूर हो जाते हैं। मां कात्यायनी की पूजा से अविवाहित लड़कियों के विवाह के योग बनते हैं और सुयोग्य वर भी मिलता है। देवी कात्यायनी की पूजा से रोग, शोक, संताप, भय आदि का नाश हो जाता है। देवी कात्यायनी की पूजा करने से हर तरह का भय भी दूर हो जाता है। नवरात्रि के छठे दिन देवी के कात्यायनी स्वरूप की पूजा की जाती है। इनकी उत्पत्ति या प्राकट्य के बारे में वामन और स्कंद पुराण में अलग-अलग बातें बताई गई हैं। मां कात्यायनी देवी दुर्गा का ही छठा रूप है। स्कंद पुराण में कहा गया है कि देवी के कात्यायनी रूप की उत्पत्ति परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से हुई थी। वहीं वामन पुराण के अनुसार सभी देवताओं ने अपनी ऊर्जा को बाहर निकालकर कात्यायन ऋषि के आश्रम में इक_ा किया और कात्यायन ऋषि ने उस शक्तिपूंज को एक देवी का रूप दिया। जो देवी पार्वती द्वारा दिए गए सिंह पर विराजमान थी। कात्यायन ऋषि ने रूप दिया इसलिए वो दिन कात्यायनी कहलाईं और उन्होंने ही महिषासुर का वध किया। उन्होंने बताया कि माता कात्यायनी की पूजा प्रदोष काल यानी गोधूली बेला में करना श्रेष्ठ माना गया है। शैलपुत्री सहित अन्य देवियों की तरह इनकी भी पूजा की जाती है। इनकी पूजा में शहद का प्रयोग जरूर किया जाना चाहिए, क्योंकि मां को शहद बहुत पसंद है। शहद युक्त पान का भोग भी देवी कात्यायिनी को लगता है। देवी कात्यायनी की पूजा में लाल रंग के कपड़ों का भी बहुत महत्व है। माता कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य, चमकीला और प्रकाशमान है। माता की चार भुजाएं हैं। माताजी के दाहिने ओर का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुसज्जित है। माता जी का वाहन सिंह है। शहर के प्राचीन मरीह माता मंदिर में हर साल की तरह 64 योगिनी माता की पूजा के अलावा देवी के नौ रुप की पूजा अर्चना की जाती है।   

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