वास्तव में, हर व्यक्ति में अनंत शक्ति का वास होता है, जिसे हम आत्मशक्ति, चेतना, या कुंडलिनी शक्ति के रूप में जानते हैं। यह शक्ति यदि सुप्तावस्था में रहती है, तो व्यक्ति साधारण जीवन जीता है, लेकिन जब यह जाग्रत होती है, तो वह आध्यात्मिक और आत्मिक रूप से विकसित होने लगता है। कुंडलिनी योग और चक्रों की अवधारणा हमें यह समझने में मदद करती है कि शरीर और ब्रह्मांड में गहरा संबंध है। मेरुदंड में स्थित चक्र ऊर्जा केंद्रों के रूप में कार्य करते हैं, जो हमारे जीवन, विचारों और क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। शक्ति की उपासना, विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान, इसी आंतरिक ऊर्जा को पहचानने और संतुलित करने का अवसर प्रदान करती है। जब हम अपने अंदर की ऊर्जा को पहचानते हैं और उसे बाहरी ऊर्जा के साथ संतुलित करते हैं, तो हम सृष्टि और ब्रह्मांड की लय में समाहित हो जाते हैं। यही सच्ची साधना और आत्मिक उत्थान का मार्ग है नवरात्रि। ब्रह्म पुराण के अनुसार इस दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का सृजन किया था। इसलिए इस दिन नया संवत्सर शुंरू होता है। अतः इस तिथि को ‘नवसंवत्सर‘ भी कहते हैं। मान्यता है कि मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। देवी दुर्गा की आराधना का पर्व नवरात्र का प्रारंभ वर्ष प्रतिपदा से होता है। युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के साथ युगाब्द यानी युधिष्ठिर संवत का प्रारंभ भी इसी दिन से माना जाता है। इसी दिन उज्जयिनी के सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रम संवत का प्रारम्भ किया था। भारत सरकार के राष्ट्रीय पंचांग शालिवाहन शक संवत का प्रारंभ भी वर्ष प्रतिपदा को हुआ था
शुभ मुहूर्त
मां दुर्गा की पूजा करने से पहले कलश की पूजा की जाती है. कलश को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है. इस कलश में देवी दुर्गा की शक्ति और पवित्रता विराजमान होती है. कलश स्थापना के दौरान, देवी दुर्गा की पूजा की जाती है, साथ ही उनसे आशीर्वाद और सुरक्षा की प्रार्थना की जाती है. इस बार चैत्र नवरात्रि 30 मार्च से प्रारंभ हो रहा है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 29 मार्च को शाम 4 बजकर 27 मिनट से होगी और तिथि का समापन 30 मार्च को दोपहर 12 बजकर 49 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, चैत्र नवरात्र रविवार, 30 मार्च से ही शुरू होने जा रही है. कलश स्थापना मुहूर्त 30 मार्च को सुबह 6 बजकर 13 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 22 मिनट तक रहेगा, जिसकी अवधि 4 घंटे 8 मिनट की रहेगी. अगर आप मुहूर्त में कलश स्थापना न कर पाएं तो अभिजीत मुहूर्त में भी घटस्थापना कर सकते हैं. अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 01 मिनट से लेकर 12 बजकर 50 मिनट तक रहेगा.
अष्टमी तिथि
नवरात्रि में विशेष रूप से अष्टमी तिथि का अत्यधिक महत्व है, क्योंकि इस दिन मां दुर्गा ने चंड-मुंड नामक राक्षसों का वध किया था. इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से पूरे नवरात्रि के समान पुण्य फल प्राप्त होता है. अष्टमी तिथि 5 अप्रैल को है। अष्टमी तिथि शुरूवात 4 अप्रैल, रात 8ः12 बजे है, जो 5 अप्रैल, शाम 7ः26 बजे समाप्त होगा। संधि पूजा मुहूर्तः शाम 7ः02 बजे से 7ः50 बजे तक है। शुभ मुहूर्तः सुबह 7ः41 बजे से 9ः15 बजे, चर मुहूर्तः दोपहर 12ः24 बजे से 1ः58 बजे, लाभ मुहूर्तः दोपहर 1ः58 बजे से 3ः33 बजे व अमृत मुहूर्तः दोपहर 3ः33 बजे से 5ः07 बजे तक है। इसके अतिरिक्त, कई भक्त कन्या पूजन का आयोजन भी करते हैं. इस दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है, जो मां दुर्गा का आठवां रूप है. देवी भागवत पुराण के अनुसार, मां महागौरी भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं और उनकी उपासना करने से जीवन की कठिनाइयां सरल हो जाती हैं. पंचमी तिथि का क्षय होने से इस बार नवरात्रि 9 दिन की बजाय 8 दिन की होगी। इस बार 31 मार्च को द्वितीया तिथि सुबह 9ः12 मिनट तक रहेगी। इसके बाद तृतीया तिथि लग जाएगी जो 1 अप्रैल को सुबह लगभग 5 बजकर 45 मिनट तक रहेगी। यानि तृतीया तिथि का क्षय होगा। इसलिए 31 मार्च को माता ब्रह्माचारिणी और चंद्रघंटा की पूजा की जाएगी।
मां के नौ रुपों की पूजा
सनातन संस्कृति के संदर्भ में नवरात्रि को आदिशक्ति की साधना का सर्वश्रेष्ठ कालखंड माना जाता है। देवीसूक्त में आदिशक्ति नवदुर्गा के नौ रूपों की उपासना का विशद वर्णन मिलता है। नवरात्रि पर्व व्यक्ति को यम, नियम, व्रत-उपवास के द्वारा उसकी सूक्ष्म और स्थूल कर्मेंद्रियों की शुचिता, आत्मानुशासन एवं परिशोधन के लिए विशेष अवसर प्रदान करने का पर्व है। नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री का होता है। पहले दिन घी का भोग लगाएं और दान करें। इससे रोगी को कष्टों से मुक्ति मिलती है और बीमारी दूर होती है। दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी का होता है। माता को शक्कर का भोग लगाएं और उसका दान करें. इससे आयु लंबी होती है। तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। मां को दूध चढ़ाएं और इसका दान करें। ऐसा करने से सभी तरह के दुःखों से मुक्ति मिलती है। चौथे दिन मां कुष्मांडा की अराधना होती है। माता को मालपुए का भोग लगाएं और दान करें। इससे सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति व सुख की प्राप्ति होती है। पांचवें दिन मां स्कंदमाता का है। मां को केले व शहद का भोग लगाएं व दान करें। इससे परिवार में सुख-शांति रहेगी और शहद के भोग से धन प्राप्ति के योग बनते हैं। छठे दिन मां कात्यानी की पूजा की जाती है। षष्ठी तिथि के दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है। सातवां दिन मां कालरात्रि को पूजा जाता है। मां को गुड़ की चीजों का भोग लगाकर दान करने से गरीबी दूर हो जाती है। अष्टमी के दिन महागौरी यानि मां दुर्गा को समर्पित है। माता को नारियल का भोग लगाकर दान करना चाहिए, ऐसा कहा जाता है कि इससे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। नवमी पर सिद्धदात्रि की पूजा की जाती है। मां को विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाएं और फिर उसे गरीबों को दान करें। इससे जीवन में हर सुख-शांति मिलती है।
सोच में आता है बदलाव
विचारो को सकारात्मक बनाये रखने के लिए मां दुर्गा के जिन नौ रूपों की पूजा अर्चना की जाती है, वे रूप असल में मनुष्य की विभिन्न मनोदशाओं के परिष्कार से जुडी है। दुर्गा सप्तसती में जिन राक्षसो का संहार के विषय में जिन रूपों का जिक्र आता है वे असल में हमारी नकारात्मक ऊर्जा का प्रतिक है। विज्ञानं भी व्रत का उलेख करते है। व्रत रखने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है। शरीर से अनेक व्याधि दूर होती है। मन विचलित नहीं होता है। मन में शुद्ध विचारो का आदान प्रदान होता है। देवी दुर्गा की स्तुति, कलश स्थापना, सुमधुर घंटियों की आवाज, धूप-बत्तियों की सुगंध- नौ दिनों तक चलने वाला आस्था और विश्वास का यह अनोखा त्योहार है। इस दौरान हर कोई एक नए उत्साह और उमंग से भरा दिखाई पड़ता है। देवी दुर्गा की पवित्र भक्ति से भक्तों को सही राह पर चलने की प्रेरणा मिलती है।
शुद्ध होता है तनमन
नवरात्र के इन नौ दिनों में जो व्यक्ति श्रद्धा, भावना से परिपूर्ण हो, नियम से जप, शौच, अहिंसा, स्वाध्याय, चिंतन का अभ्यास करता रहे तो इस परायण के फलस्वरूप उसकी अपनी गूढ़तम् दिव्य शक्तियां जागृत हो सकती हैं। फिर इस देवत्व को प्राप्त कर वह अपने जीवन को एक नई दिशा, एक नई उमंग, एक नई तरंग प्रदान कर सकता है। देवी हमसे बाहर नहीं हैं। देवी हमीं में हैं। शिव हमसे अन्यत्र नहीं हैं। शिव भी मेरी ही परम चेतना हैं। अपने अंदर मौजूद इस शिव और शक्ति की पहचान करने का यह दुर्लभ सुअवसर किन्हीं सौभाग्यशालियों को मिलता है। मानव अधिकतर देह से संबंधित इच्छाओं, अभिलाषाओं की ही पूर्ति करने में अपना सारा जीवन व्यर्थ कर देता है। किन्हीं धन्यभागी, पुण्यशील मानवों के जीवन में अवसर आता है, जहां वह अपने अंदर मौजूद उस परम आदिशक्ति की पहचान कर पाता है और उस शक्ति की दिव्य लीला का अनुभव करके कृतकृत होता है।
सुरेश गांधी
वरिष्ठ पत्रकार
वाराणसी
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